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रिश्ते - लेखनी प्रतियोगिता -13-Jun-2022

मेरे कलाइयों का यह अति सुंदर कंगना
खनक याद दिलाए  बाबुल का अंगना।

चिड़िया सी चहकती तितली सी उड़ती
अभी यहाँ तो अभी वहाँ मैं थी फिरती।

खुलकर हँसती चीखती और चिल्लाती
सबसे मैं असीम प्यार ही प्यार थी पाती।

जब पहनती हाथ में सुंदर-सुंदर चूड़ियाँ
याद आती माँ के हाथों की गरम पूडियाँ।

बेलती जब वे पूड़ी, चूड़ियाँ संग खनकती
मानो किसी मधुर संगीत सी बज उठती।

माँ की गोरी कलाइयों में थी बड़ी फबती
लुभावनी मीना-मोती की कारीगरी जँचती।

मेरे गुलाबी होठों पर लगी हुई सुर्ख लाली
याद दिलाती है नटखट भाई की ताली।

कहता लगती तू लाल मुँह की बंदरिया
मिलेगा तुझे लाल मुँह वाला बंदर पिया।

लड़ते-झगड़ते खींचते एक-दूजे के कान
पर भैया की बसी हुई थी मुझमें ही जान।

मेरे कानों में झूमती हुई मदमस्त बाली 
देखकर याद आती  सखियाँ मतवाली।

छेड़ती कह पैरों में मत पहन सखी पायल
न जाने कितनों को किया है तूने घायल।

सखियों की बात सुनकर मैं शरमा जाती
मेरी हालत देख सब मुझे और भी चिढ़ाती।

मेरे काले-कजरारे नैनों की चंचल चितवन
याद दिलाती कैसे पिया का हर्षाया था मन।

मोहिनी पुष्प वाटिका बीच मिले नैन से नैन
आँखों ही आँखों में था चुराया दिल का चैन।

मांझी बन थामी पतवार ले चले मेरे  सइया
सम्मान और प्यार से रखा पलकों की छैया।

हर रिश्ते से मैंने एक नया अहसास था पाया
दूर ही सही, सबको अपने मन-मंदिर में बसाया।

मैके और ससुराल के बीच कभी भेद न पाया 
सास को सखी संग माँ भी अपनी मैंने बनाया।

ननद-देवर भाई-बहन से करे मुझसे अठखेलियाँ
प्यारा परिवार मेरा मानो उपवन की हो कलियाँ।

डॉ. अर्पिता अग्रवाल

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18 Comments

Seema Priyadarshini sahay

15-Jun-2022 07:01 PM

बेहतरीन रचना

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Khushbu

14-Jun-2022 09:32 PM

शानदार प्रस्तुति

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Zakirhusain Abbas Chougule

14-Jun-2022 07:02 PM

Bahut Sunder

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